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स्वयं मुक्त रहूँगा, औरों को मुक्ति दिलाऊँगा || आचार्य प्रशांत, उत्तर गीता पर (2019)

2024-11-03 1 Dailymotion

वीडियो जानकारी: 14.12.2019, पार से उपहार शिविर, ग्रेटर नॉएडा, उत्तर प्रदेश, भारत <br /><br />प्रसंग: <br /><br />~ उत्तर गीता में किसके मध्य में संवाद है? <br />~ लोक व्यवहार क्या है? <br />~ संसार से मुक्ति कैसे प्राप्त हो? <br />~ लोक व्यवहार का त्याग कैसे करें? <br />~ उपनिषद क्या हैं? <br /><br />प्रसंग: <br />ततः कदाचिन्निर्वेदान्निराकाराश्रितेन च। <br />लोकतन्त्रं परित्यक्तं दुःखार्तेन भृशं मया॥३८॥ <br />~ उत्तर गीता, अध्याय १, श्लोक ३८ <br />भावार्थ: इस प्रकार बारम्बार क्लेश उठने से एक दिन मेरे मन में बड़ा खेद हुआ और मैंने दुखों से घबराकर निराकार परमात्मा की शरण ली तथा समस्त लोकव्यवहार का परित्याग कर दिया।। <br /><br />नाहं पुनरिहागन्ता लोकानालोकयाम्यहम्। <br />आसिद्धेराप्रजासर्गादात्मनो मे गतीः शुभाः॥४०॥ <br />~ उत्तर गीता, अध्याय १, श्लोक ४० <br /><br /><br />संगीत: मिलिंद दाते <br />~~~~~

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